Friday, 29 November 2019

सूर्योदय और सूर्यास्त...

प्रकृति की दो प्रक्रियाएँ हमेशा से ही आकर्षित करती रही हैं। वो हैं - सूर्योदय और सूर्यास्त। भोर की वेला का आकर्षण होता है सूर्योदय और वैसे ही साँझ वेला का मुख्य आकर्षण सूर्यास्त होता है। मुझे अच्छी तरह से याद है कि बचपन में स्कूल की दीवारों पर लिखी हुई सूक्तियों में एक यह भी हुआ करती थी कि "सूर्य न तो अस्त होता है और न उदय, हम ही जागकर सो जाते हैं।" अब बाल मन ने कहावत पढ़ी और अनदेखा कर दिया, हर दिन। उस समय इस कहावत के खगोलीय और दार्शनिक महत्व के बारे में ज्यादा पता न था। और अब हालत ये है कि सूर्योदय और सूर्यास्त को देखते ही मेरे अंदर का दार्शनिक जाग उठता है। हालाँकि दिनचर्या ऐसी है कि इनको देखना कम ही हो पाता है। और ऐसा भी नहीं है कि सूर्योदय को देखकर सबके मन में सिर्फ दार्शनिक विचार ही आते हैं। लेखक जरॉड किंट्ज़ ने तो सूर्य के चाल-चलन की ही शिकायत कर दी। कारण भी ये कि भोर में सूर्य रेंगते हुए खिड़कियों पर चढ़ आता हैं और वहां से झांकता है। लेकिन घबराइये नहीं। सूर्य के चरित्र-हनन का मेरा कोई इरादा नहीं है। कभी कभी सोचता हूँ कि मनुष्य को सूर्योदय और सूर्यास्त क्यों अच्छा लगता है। सूर्योदय को अच्छा लगने के पीछे यह कारण हो सकता है कि मनुष्य की इस धारणा की पुष्टि होती है कि अंधकार नित्य नहीं रहेगा। हमारी संस्कृति में अंधकार को बुराई और प्रकाश को अच्छाई का प्रतीक माना गया है। प्रतिदिन सूर्योदय उस बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। और सहज ही समझा जा सकता है कि पुराने समय में लोग सूर्योदय की इतनी बेसब्री से प्रतीक्षा क्यों करते होंगे। और रही बात सूर्यास्त की तो उसको भी अच्छाई-बुराई से जोड़ते हुए यह कहा जा सकता है कि लोगों को पता है कि यह जो अँधेरा सूर्यास्त ला रहा है वो क्षणिक है, कल फिर सूर्योदय होगा और अंधकार पराजित होगा। इसलिए वो उत्साह से भोर का इंतज़ार करते हैं। कभी यह नहीं सोचा था कि सूर्योदय और सूर्यास्त में ज्यादा कौन अच्छा लगता है। मुझसे यह प्रश्न हिंदी साहित्य जगत के नवांकुरों में से एक ने पूछा था। मैंने थोड़ा सोचा इस बारे में, लेकिन बुद्धिजीवियों को संतुष्ट कर पाने वाला जवाब नहीं मिला। मैंने बताया कि सूर्यास्त ज्यादा अच्छा लगता है क्योंकि वो आँखों को ज्यादा सुखदायी होता है। तब उस नवांकुर ने बताया , "किसी चीज की सुंदरता का एहसास तब ज्यादा होता है जब वह हमसे दूर जा रही हो, बजाय इसके कि जब वह चीज हमारे पास आई हो और काफी दिन तक साथ रहे। और जब हम किसी चीज को जाते हुए देखते तो ही हमें इस चीज का एहसास होता है ... शायद यह जवाब सही भी है हमारी जिंदगी के हिसाब से.....

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