Monday, 2 December 2019

पहाड़ का पानी और जवानी पहाड़ के काम नहीं आती ..जल जंगल जमीन और हम

    मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही मनुष्य का जंगल से गहरा रिश्ता रहा है। हवा, पानी तथा भोजन जंगलों से जुटाए जाते रहे हैं। उत्तराखण्ड में जीवनयापन का मुख्य आधार खेती और पशुपालन रहा है। इन दोनों का आधार स्थानीय वनों से प्राप्त होने वाली उपज है। जलाने के लिए ईंधन की पूर्ति, खेती में प्रयुक्त होने वाले औजार, खाद हेतु पत्तियाँ, जड़ी-बूटी, जानवरों के लिए चारा और घास, घर बनाने के लिए लकड़ी के सबसे बड़े स्रोत स्थानीय वन ही रहे हैं। उत्तराखंड एक करोड़ 86 लाख मनुष्य के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का भी घर है जल जंगल और जमीन जैसे प्राथमिक संसाधन यहां पर प्रचुर और पर्याप्त मात्रा में है उत्तराखंड निर्माण से पूर्व पृथक राज्य की मांग का एजेंडा था कि यहां के प्राकृतिक संसाधनों को अपने रोजगार और स्वालंबन का आधार बनाया जाएगा व राज्य बनने पर रोजगार के अवसर बढ़ेंगे रोजी-रोटी की तलाश में पढ़ने लिखने खेलने कूदने की उम्र में अपना गांव छोड़ सुदूर मैदानों की खाक छानने की यातना से मुक्ति मिलेगी वह उत्तराखंड में अपना पृथक स्वायत्त अर्थ तंत्र आकार लेगा लेकिन राज्य तो बन के बन गया लेकिन ना रोजगार के अवसर बढ़े और ना ही पलायन का वेग कम हुआ.
    उत्तराखंड मध्य हिमालयी क्षेत्र है हिमालय के पर्यावरण और मनुष्य के बीच अगर बात करें तो हिमालय अपनी पारिस्थितिकी के अलावा अपने साथ पल रहे मानव और अन्य जीवो का भी पालनहार है.. उत्तराखंड में पानी इतना ज्यादा है कि देश के 8 राज्यों के अलावा बांग्लादेश तक फैले करोड़ों लोगों और खेतों की प्यास बुझा रहा है यहां पर जल विद्युत उत्पादन की कई संभावनाएं चिन्हित हैं वन पहले की तरह घने नहीं है किंतु पहाड़ों का आवरण बने हुए हैं अब तक जो विकास नीतियां बनी है उसमें हिमालय के दोनों पक्षों में संतुलन स्थापित नहीं किया गया है पारिस्थितिकी को बचाने के नाम पर स्थानीय लोगों की सदियों पुरानी वन आधारित जीवन शैली को समाप्त कर नेशनल पार्क और अभयारण्य का निर्माण जैसे कदम उठाए गए हैं उत्तराखंड में कुल क्षेत्रफल 53483 का 64.81% क्षेत्र वन विभाग के नियंत्रण में है राज्य में 14% भूमि निजी स्वामित्व अथवा कृषि भूमि है इसी में औद्योगिक क्षेत्र भी है पहाड़ी क्षेत्रों में निजी स्वामित्व की भूमि मात्र 7.75% है इसी नाम मात्र की भूमि पर बढ़ती जनसंख्या नगरीकरण और विकास परियोजनाओं का दबाव है और इसी को आधार बनाकर राज्य सरकार द्वारा जैविक खेती बागवानी जड़ी बूटियों जैसे कार्यक्रम की घोषणा कर रही हैं वन पंचायतें ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है यह सामूहिक रूप से संचालित की जाने वाली वन प्रबंधन की मिसाल है जो वन संरक्षण के बीच संतुलन को भी बनाए हुए हैं प्रारंभ में यह कार्य ग्रामीण बिना किसी आर्थिक स्वार्थ के करते आ रहे थे लेकिन वर्तमान में सरकार द्वारा विश्व बैंक के कर्ज से संचालित की जा रही संयुक्त वन प्रबंधन परियोजना इसमें थोप दी गई है जिसके बाद ग्रामीणों का दृष्टिकोण बदल गया वह वह वनो को नगद कमाने का जरिया समझने लगे हैं जैव विविधता की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण उत्तराखंड मैं अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा संरक्षित क्षेत्रों का क्षेत्रफल अत्यधिक है राज्य में एक बायोस्फीयर 7 नेशनल पार्क और 7 अभ्यारण अवस्थित है वन पंचायतों का संचालन शासन द्वारा निर्मित एक नियमावली के अधीन किया जाता है जिसमें वन क्षेत्र का संरक्षण तथा वन उत्पाद प्राप्त करने के उपनियम बनाने का अधिकार ग्रामीणों के पास होता है.. जल जंगल और जमीन की स्थितियां उत्तराखंड के लिए यहां के मनुष्य और प्राकृतिक संसाधनों के रिश्ते पर आधारित दिखाई पड़ती है जिसे हमारी सरकारें लगातार नजरअंदाज कर रही हैं सच्चाई यह है कि निजी स्वामित्व की भूमि का आकार बढ़ती जरूरतों के विपरीत निरंतर सिकुड़ता जा रहा है इसके उपयोग का कोई तरीका खोज निकालना होगा अन्यथा प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता बढ़ाने के लिए गैर वन वाली वन भूमि स्थानीय समुदाय को लौटाए बिना दूसरा रास्ता नहीं है.
    ग्रामीण जीवन आज भी प्राकृतिक संसाधनों तथा जल जंगल और जमीन पर ही टिका हुआ है ग्रामीणों के जीवन यापन में खर्च हो रहे इन संसाधनों को यदि पैसे की कीमत में बदल कर देखा जाए तो उत्तराखंड को मनीआर्डरी कहने वाले अर्थशास्त्रियों को अपने निष्कर्ष बदलने पर मजबूर होना पड़ेगा प्रारंभ में ब्रिटिश काल के आगमन से पूर्व स्थानीय लोग वनों के मालिक थे अंग्रेजों को जब यहां की प्राकृतिक वन संपदा का पता चला तो वह इसके दोहन के लिए ललक पड़े उत्तराखंड राज्य बन जाने के बाद भी यह सिलसिला जारी है कभी अभ्यारण. नेशनल पार्क कभी विश्व बैंक की परियोजना के रूप में यह दबाव दिखाई पड़ रहे हैं नई वन पंचायत नियमावली और नवीनतम दृष्टिकोण के जरिए स्थानीय लोग उनके नैसर्गिक अधिकारों से वंचित होते जा रहे हैं यह कार्य अंग्रेजों ने धीरे-धीरे शुरू किया जो व्यापारिक रूप से आजादी के बाद तक चलता रहा इस प्रकार जंगल के वर्तमान स्वरूप सामने हैं....

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thank you i will...