डा0 गौरव कुमार
Friday, 29 November 2019
पहाड़ का हरा सोना
*पहाड़ का हरा सोना बांज*
बांज (ओक) को पहाड़ का हरा सोना कहा जाता है। पहाड़ के पर्यावरण,खेती- बाड़ी, समाज व संस्कृति से गहरा ताल्लुक रखने वाला बांज धीरे-धीरे जंगलों से गायब होता जा रहा है। बाज हिमालय की बहूउपयोगी वृक्ष संपदा है जो चारा जलावन खाद कृषि यंत्र और वन्यजीवों को आहार देने के साथ ही पर्यावरण में नमी बनाकर जल संचय करता है वैज्ञानिकों का मानना है कि बांज वनों की मिट्टी में पानी को संचय करने की क्षमता 56 - 70% तक है इसकी पत्तियों में 10% तक प्रोटीन पाई जाती है जो जानवरों के लिए अत्यंत पौष्टिक है। इसका वानस्पतिक नाम क्योरकस ल्यूकोटराकोपोफोरा है. दुनिया भर में बांज की 41 भारत में 12 और उत्तराखंड में 5 प्रजातियां पाई जाती हैं उत्तराखंड में यह 1000 से 3600 मीटर तक मौजूद है यहां इसे फल्याॅट बांज तिलौंज खरसू व रियाॅज / मोरू के नाम से जाना जाता है जंगलों में पशुओं की मुक्त चराई से भी बांज के नवजात पौधों को बहुत नुकसान पहुंचता रहा है। ब्रिटिश काल में उत्तराखंड में कई स्थानों पर चाय और फलों के बाग लगाने के लिये भी बांज वनों का सफाया किया गया। सरकारी कार्यालयों में लकडी़ के कोयलों की पूर्ति के लिये भी पूर्वकाल में बड़ी संख्या में बांज के पेड़ काटे गये।
उत्तराखंड का यह लोकगीतः “…नी काटा नी काटा झुमराली बांजा, बजांनी धुरो ठण्डो पाणी…” का आशय भी यही है कि लकदक पत्तों वाले बांज को मत काटो, इन बांज के जंगलों से हमें ठण्डा पानी मिलता है।
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thank you i will...