Saturday, 14 September 2019
अंतरात्मा की आवाज
नागार्जुन बहुत बड़े बौद्ध रहस्यदर्शी थे, जो एक मठ में अकेले रहते थे। महारानी ने उनसे प्रभावित होकर उन्हें सोने का भिक्षा पात्र भेंट किया। नागार्जुन स्वर्ण पात्र लेकर आ रहे थे, तो एक चोर ने उन्हें देखा और उनके पीछे लग गया। नागार्जुन घर जाकर भोजन करने बैठे, चोर बाहर इंतजार करने लगा। नागार्जुन ने भोजन करके भिक्षा पात्र को बाहर फेंक दिया। चोर हैरान हुआ, वह अंदर आया और पूछा- आपने इतना कीमती कटोरा बाहर क्यों फेंक दिया? नागार्जुन बोले, मैंने अपने भीतर इससे भी कीमती हीरा पा लिया है। चोर ने कहा, मुझे भी वह पाना है। कैसे पाऊं? नागार्जुन ने कहा, तुम चोरी करना जारी रखो, बस उसे होशपूर्वक करो। एक-एक क्रिया पर ध्यान दो- यह मैंने ताला तोड़ा, ऐसी चीजें उठाईं, जो मेरी नहीं हैं। जिनके गहने ले जा रहा हूं, वे महिलाएं दुखी होंगी। फिर चोरी करके वापस आओ और ध्यान करने बैठ जाओ। चोर खुश होकर चला गया।
चार दिन बाद वापस आया और बोला, आपने मुझे बुरा फंसाया। अब न मैं चोरी कर सकता हूं और न ध्यान। चोरी करने जाऊं , तो मेरी अंतरात्मा कचोटती है। आजकल अंतरात्मा वगैरह के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं होती। कानों में लगे ईयर फोन अंतरात्मा को कहां सुनने देंगे? वैसे अंतरात्मा की कोई आवाज नहीं होती, उसका कोई स्वर नहीं है, वह भीतर से होने वाली प्रतीति है। जब आप गहरे मौन में डूबते हैं, तब स्वयं से जुड़ जाते हैं, उस भीतरी आकाश में सच के अलावा कुछ नहीं होता। उसे आवाज इसलिए कहते हैं, क्योंकि नि:शब्द मौन भी शब्द का ही रूप है। शब्द एक ध्वनि है। वह जब गहरे उतरती है, तो सिर्फ तरंग रह जाती है। इस स्थिति को उपनिषद् में पश्यंती कहा गया है। abhar hindustan...
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thank you i will...