इतिहास क्यों पढ़ें?
अतीत एवं वर्तमान के मध्य निरंतरता को बनाये
रखने के लिए इतिहास एक प्रभावी माध्यम है। इसकी सहायता से मानव समाज के
विविध पक्षों जैसे धर्म, समाज, राजनीति, अर्थ, विज्ञान आदि के विषय में
सम्यक् ज्ञान एवं दृष्टि का निर्माण होता है और यह प्रक्रिया निरन्तर
अग्रसर होती रहती है। उपलब्ध तथ्यों का संकलन एक कठिन कार्य है। इस समस्या
के समाधान में इतिहास चिंतन या दर्शन की प्रमुख भूमिका है। इतिहास दर्शन के
अभाव में इतिहास का वपु निर्जीव जैसा है। इतिहास में प्राणतत्व अथवा सजीवता का निर्माण इतिहास दर्शन के आधार पर होता है।
इतिहास मानव समाज की प्रगति एवं मानव समाज को समझने का ही नहीं उसे बदलने का भी अनिवार्य उपकरण है। इतिहास की प्रयोगशाला में ही नवीन पथ का सर्जन सम्भव है। इतिहास एक विषय ही नहीं अपितु अस्तित्व का बोध है।
इतिहास मानव समाज की प्रगति एवं मानव समाज को समझने का ही नहीं उसे बदलने का भी अनिवार्य उपकरण है। इतिहास की प्रयोगशाला में ही नवीन पथ का सर्जन सम्भव है। इतिहास एक विषय ही नहीं अपितु अस्तित्व का बोध है।
इतिहास-चिन्तन का सत्य इतिहास-बोध का आधार है। इतिहास बोध के बिना कोई भी
ज्ञान परिपूर्ण नहीं है। व्यष्टि और समष्टि के लिए समान रूप से इतिहास-बोध
आवश्यक है।
इतिहास दर्शन के ज्ञान से पाठक को एक सही दृष्टि और एक नया आलोक मिलेगा, जिसके सहारे वह स्वयं अपनी सांस्कृतिक अस्मिता प्रतिष्ठित कर सकेगा। इसकी आज कितनी आवश्यकता है यह बताने की जरूरत नहीं है। यह भी जानी हुई बात है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति का विषय हमारे विश्वविद्यालयों में जिस रूप में पढ़ाया जा रहा, उससे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की न कोई पहचान बनती है और न उसके लिए कोई सम्यक् दृष्टि मिलती है।
इतिहास दर्शन के ज्ञान से पाठक को एक सही दृष्टि और एक नया आलोक मिलेगा, जिसके सहारे वह स्वयं अपनी सांस्कृतिक अस्मिता प्रतिष्ठित कर सकेगा। इसकी आज कितनी आवश्यकता है यह बताने की जरूरत नहीं है। यह भी जानी हुई बात है कि भारतीय इतिहास और संस्कृति का विषय हमारे विश्वविद्यालयों में जिस रूप में पढ़ाया जा रहा, उससे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता की न कोई पहचान बनती है और न उसके लिए कोई सम्यक् दृष्टि मिलती है।
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thank you i will...