Wednesday, 20 January 2021
गुर्जर समुदाय के बीच यात्रा अभियान..
गुर्जर खानाबदोश परंपरागत पशुचारक है. वनों में रहने के कारण इन्हें वन गुर्जर भी कहा जाता है अंग्रेजी शासन काल में यह राजस्व व दुग्ध आपूर्ति के महत्वपूर्ण स्रोत थे आजादी के बाद वन संरक्षण के लिए बने नियमों ने इनके खानाबदोश जीवन को प्रतिबंधित कर दिया है. एक और प्रकृति संरक्षण वादी वनों से मानव को पृथक करते हैं तो दूसरी और सामुदायिक भावना को जन्म देते हैं गुर्जर सदियों से वनों के बीच रहकर आजीविका प्राप्त कर रहे हैं वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या व जंगलों का आकार इनका जीवन हाशिए पर है आज भी इनकी कई श्रेणियां गर्मियों के मौसम में उच्च हिमालई क्षेत्र की ओर पलायन करती है तथा ठंड के मौसम में मैदानी इलाकों में आ जाते हैं
गुर्जर मेहमान नवाज हैं प्रकृति के बीच रहने के कारण इन्हें विभिन्न प्रकार के औषधियों व जंगली फल सब्जियों का ज्ञान है पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के कारण अनिवार्य रूप से मक्का गेहूं की रोटी तथा सब्जियों में दूध व उस से बनी वस्तुएं मक्खन लस्सी भी अनिवार्य रूप से खाते हैं जिससे उन्हें वसा की पूर्ति आसानी से हो जाती है..
माना जाता है कि गुर्जर जम्मू कश्मीर से दहेज में हिमांचल प्रदेश पहुंचे वह वहां से उत्तराखंड उत्तर प्रदेश हिमालय की तलहटी ओं में फैल गए.. उत्तराखंड के गुर्जर भी अपने पूर्वजों को हिमाचल प्रदेश का निवासी बताते हैं ..आज हम सिरमौर में वन गुर्जरों के बीज उपस्थित हुए जहां गुर्जर सर्वप्रथम दहेज के रूप में आए थे ..वन गुर्जरों के बीच सहभागी अवलोकन तथा उनके रहन-सहन खान-पान को जानने का मौका मिला गुर्जरों में अपनी भाषा पंचायत वेशभूषा तथा रहने का विशेष तरीका है यह पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर हैं वह मुख्य रूप से पशुपालन व्यवसाय करते हैं.. अशिक्षित होने के कारण या समाज आज भी पिछड़ा हुआ है वह पशुचारण युगीन सभ्यता में जीवन यापन कर रहा है. इनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है..
धन्यवाद बाजीर गुज्जर पोंटा साहिब सिरमौर हिमाचल प्रदेश..
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thank you i will...