Saturday, 23 January 2021

गुर्जर समुदाय की शिक्षा

हिमालयी राज्यों की यात्रा के क्रम में राजाजी पार्क देहरादून के गौहरी रेंज में गुज्जर समुदाय के बीच... इस यात्रा अभियान में जहां एक और कई अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर प्राप्त हुए साथ सहभागी अवलोकन से ऐसा अनुभव प्राप्त हुआ जो मानवीय दृष्टिकोण को और अधिक गहराई से समझने की क्षमता रखता है इस समुदाय ने जंगलों के बीच सहजीवन सिद्धांत के आधार पर अपनी जीवन शैली को विकसित किया है..
गुर्जर जम्मू कश्मीर राज्य का तीसरा व हिमांचल प्रदेश का दूसरा सबसे बड़ा जनजाति समुदाय है.. हिमांचल में हिंदू व मुस्लिम गुर्जरों के गोत्र समान है इनमे हिंदू धर्म की भांति गोत्र व्यवस्था पाई जाती है, समान गोत्र के गुर्जर आपस में बिरादर कहलाते हैं जिनमें विवाह निषेध होता है.. इस प्रकार गोत्र को एक कबीले के रूप में परिभाषित कर सकते हैं इन हिमालय राज्यों के गुर्जरों की सामान्य विशेषता है कि इनका परंपरागत व्यवसाय पशुपालन रहा है कश्मीर व हिमाचल में जनजाति का दर्जा प्राप्त होने के पश्चात गुर्जर उच्च पदों पर आसीन होने के साथ शिक्षा के क्षेत्र में भी आगे हैं किंतु इन्हीं की भांति कबीलाई विशेषता. पंचायत. बोली इतिहास संस्कृति की समानता रखने वाले उत्तराखंड के गुर्जर अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हैं..वनों के बीच दुनिया की चकाचौंध से दूर रहने के कारण इनका जीवन काफी पिछड़ा हुआ है.. उनके परिवार के सदस्य पशुपालन व्यवसाय में संलग्न रहते हैं शिक्षा प्राप्ति की ओर इनका रुझान कम है.. अशिक्षा तथा वनों के बीच स्थाई पता ना होने के कारण गुर्जर सरकारी नौकरियों मैं प्रतिभाग नहीं कर पाते जिस कारण वह सामाजिक रूप से पिछड़े हैं.वनों के बीच कच्ची सड़कों संचार की सुविधा ना होने के कारण इन्हें शिक्षा स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं से दूर रहना पड़ता है इनके परिवार में अधिक संख्या में बच्चे होते हैं जो पशुपालन व्यवसाय में संलग्न रहते हैं शिक्षा प्राप्त करने मैं इनकी रूचि कम होती है जिस कारण आज भी उत्तराखंड का वन गुर्जर समुदाय अन्य राज्यों के गुर्जरों की तुलना में पिछड़ा हुआ है..

Wednesday, 20 January 2021

गुर्जर समुदाय के बीच यात्रा अभियान.. गुर्जर खानाबदोश परंपरागत पशुचारक है. वनों में रहने के कारण इन्हें वन गुर्जर भी कहा जाता है अंग्रेजी शासन काल में यह राजस्व व दुग्ध आपूर्ति के महत्वपूर्ण स्रोत थे आजादी के बाद वन संरक्षण के लिए बने नियमों ने इनके खानाबदोश जीवन को प्रतिबंधित कर दिया है. एक और प्रकृति संरक्षण वादी वनों से मानव को पृथक करते हैं तो दूसरी और सामुदायिक भावना को जन्म देते हैं गुर्जर सदियों से वनों के बीच रहकर आजीविका प्राप्त कर रहे हैं वर्तमान में बढ़ती जनसंख्या व जंगलों का आकार इनका जीवन हाशिए पर है आज भी इनकी कई श्रेणियां गर्मियों के मौसम में उच्च हिमालई क्षेत्र की ओर पलायन करती है तथा ठंड के मौसम में मैदानी इलाकों में आ जाते हैं गुर्जर मेहमान नवाज हैं प्रकृति के बीच रहने के कारण इन्हें विभिन्न प्रकार के औषधियों व जंगली फल सब्जियों का ज्ञान है पहाड़ी क्षेत्रों में रहने के कारण अनिवार्य रूप से मक्का गेहूं की रोटी तथा सब्जियों में दूध व उस से बनी वस्तुएं मक्खन लस्सी भी अनिवार्य रूप से खाते हैं जिससे उन्हें वसा की पूर्ति आसानी से हो जाती है.. माना जाता है कि गुर्जर जम्मू कश्मीर से दहेज में हिमांचल प्रदेश पहुंचे वह वहां से उत्तराखंड उत्तर प्रदेश हिमालय की तलहटी ओं में फैल गए.. उत्तराखंड के गुर्जर भी अपने पूर्वजों को हिमाचल प्रदेश का निवासी बताते हैं ..आज हम सिरमौर में वन गुर्जरों के बीज उपस्थित हुए जहां गुर्जर सर्वप्रथम दहेज के रूप में आए थे ..वन गुर्जरों के बीच सहभागी अवलोकन तथा उनके रहन-सहन खान-पान को जानने का मौका मिला गुर्जरों में अपनी भाषा पंचायत वेशभूषा तथा रहने का विशेष तरीका है यह पूर्ण रूप से प्रकृति पर निर्भर हैं वह मुख्य रूप से पशुपालन व्यवसाय करते हैं.. अशिक्षित होने के कारण या समाज आज भी पिछड़ा हुआ है वह पशुचारण युगीन सभ्यता में जीवन यापन कर रहा है. इनके पास अपनी कोई भूमि नहीं है.. धन्यवाद बाजीर गुज्जर पोंटा साहिब सिरमौर हिमाचल प्रदेश..